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मार्च माह में बागवानी फसलों में किये जाने वाले आवश्यक कार्य

मार्च माह में बागवानी फसलों में किये जाने वाले आवश्यक कार्य

किसानों द्वारा बीज वाली सब्जियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। किसानों द्वारा सब्जियों में चेपा की निगरानी करते रहना चाहिए। यदि चेपा से फसल ग्रसित है तो इसको नियंत्रित करने के लिए 25 मिली इमेडाक्लोप्रिड को प्रति लीटर पानी में मिलाकर, आसमान साफ़ होने पर छिड़काव करें। पके फलों की तुड़ाई छिड़काव के तुरंत बाद न करें। पके फलों की तुड़ाई कम से कम 1 सप्ताह बाद करें। 

1. कद्दूवर्गीय सब्जियों की बुवाई भी इस माह में की जाती है। कद्दूवर्गीय सब्जियाँ जैसे खीरा, लौकी, करेला, तोरी, चप्पन कद्दू, पेठा, तरबूज और खरबूजा है। इन सभी सब्जियों की भी अलग अलग किस्में है। 

  • खीरा - जापानीज लोंग ग्रीन, पूसा उदय,पोइंसेटऔर पूसा संयोग। 
  • लौकी - पूसा सन्देश, पूसा हाइब्रिड, पूसा नवीन, पूसा समृद्धि, पूसा संतुष्टी और पीएसपीएल।
  • करेला - पूसा दो मौसमी ,पूसा विशेष पूसा हाइब्रिड। 
  • चिकनी तोरी - पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया। 
  • चप्पन कद्दू - ऑस्ट्रेलियन ग्रीन, पैटी पेन, पूसा अलंकार। 
  • खरबूजा - हरा मधु,पंजाब सुनहरी,दुर्गापुरा मधु,लखनऊ सफेदा और पंजाब संकर। 

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2. भिन्डी और लोबिया की बुवाई भी इसी समय की जाती है। भिन्डी की अगेती बुवाई के लिए ए-4 और परभनी क्रांति जैसी किस्मों को अपनाया जा सकता है। लोबिया की उन्नत किस्में पूसा कोमल, पूसा सुकोमल और पूसा फागुनी जैसी किस्मों की बुवाई की जा सकती है। दोनों फसलों के बीज उपचार के लिए 2 ग्राम थीरम या केपटान से 1 किलोग्राम बीज को उपचारित करें। 

3. इस वक्त प्याज की फसल में हल्की सिंचाई करे। प्याज की फसल की इस अवस्था में किसी खाद और उर्वरक का उपयोग न करें। उर्वरक देने से केवल प्याज के वानस्पतिक भाग की वृद्धि होगी ना की प्याज की, इसकी गाँठ में कम वृद्धि होती है। थ्रिप्स के आक्रमण की निरंतर निगरानी रखे। थ्रिप्स कीट लगने पर 2 ग्राम कार्बारिल को 4 लीटर पानी में किसी चिपकने पदार्थ जैसे टीपोल की 1 ग्राम मात्रा को मिलाकर छिड़काव करें। लेकिन छिड़काव करते वक्त ध्यान रखे मौसम साफ होना चाहिए। 

4. गर्मियों के मौसम में होने वाली मूली की बुवाई के लिए यह माह अच्छा है। मूली की सीधी बुवाई के लिए तापमान भी अनुकूल है। इस मौसम में बीजों का अंकुरण अच्छा होता है। मूली की बुवाई के लिए बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही प्राप्त करें। 

5. लहसुन की फसल में इस वक्त ब्लोच रोग अथवा कीटों का भी आक्रमण हो सकता है। इससे बचने के लिए 2 ग्राम मेंकोजेब को 1 ग्राम टीपोल आदि के साथ मिलाकर छिड़काव करें। 

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6. इस मौसम में बैगन की फसल में फली छेदक कीट को नियंत्रित करने के लिए किसान इस कीट से ग्रस्त पौधों को एकट्ठा करके जला दे। यदि इस कीट का प्रकोप ज्यादा है तो 1 मिली स्पिनोसेड को 4 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दे। टमाटर की खेती में होने वाले फली छेदक कीटों को नियंत्रित करने के लिए इस उपाय को किया जा सकता है।

उद्यान 

इस माह में आम की खेती में किसी भी प्रकार के कीटनाशी का उपयोग ना करें। लेकिन आम के भुनगे का अत्यधिक प्रकोप होने पर 0.5 % मोनोक्रोटोफॉस के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। आम में खर्रा रोग के प्रकोप होने पर 0.5 % डिनोकैप के घोल का छिड़काव किया जा सकता है। 

अंगूर, आड़ू और आलूबुखारा जैसे फलों में नमी की कमी होने पर सिंचाई करें। साथ ही मौसम को ध्यान में रखते हुए गेंदे की तैयार पौध की रोपाई करें। गेंदे की रोपाई करने से पहले खेत में खाद की उचित मात्रा डाले। गेंदे की रोपाई खेत में उचित नमी होने पर ही करें। खरपतवारो को खेत में उगने ना दे। समय समय पर खेत की नराई , गुड़ाई करते रहना चाहिए। 

अप्रैल माह के कृषि सम्बन्धी आवश्यक कार्य

अप्रैल माह के कृषि सम्बन्धी आवश्यक कार्य

अप्रैल माह में ज्यादातर कार्य फसल की कटाई से सम्बंधित होते है। इस माह में किसान रबी फसलों की कटाई कर दूसरी फसलों की बुवाई करते है। इस माह में कृषि से सम्बंधित किये जाने वाले आवश्यक कार्य कुछ इस प्रकार है। 

रबी फसलों की कटाई 

गेहूँ, मटर, चना, जौ और मसूर आदि की फसल की कटाई का कार्य इस माह में ही किया जाता है। इन फसलों की कटाई सही समय पर होना बेहद जरूरी है। यदि फसल की कटाई सही समय पर नहीं होती है, तो फसल की उत्पादकता और गुणवत्ता पर काफी बुरा प्रभाव पड़ेगा। देर से कटाई करने पर फलियाँ और बालियाँ टूटकर गिरने लगती है। इसके अलावा चिड़ियों और चूहों के द्वारा भी इस फसल को नुक्सान पहुँचाया जा  सकता है। 

फसल की कटाई का कार्य किसान स्वयं भी कर सकता है, या फिर मशीनों द्वारा भी इसकी कटाई करवा सकते है। कुछ किसान हँसिया द्वारा फसल की कटाई करवाते है, क्योंकि इसमें भूसे और दाने का बहुत कम नुक्सान होता है। कंबाइन द्वारा फसल की कटाई आसान होती है, और इसमें हँसिया के मुकाबले बहुत ही कम समय लगता है, और धन की भी बचत होती है। 

कंबाइन से कटाई करने के लिए फसल में 20 % नमी होना जरूरी है। यदि फसल की कटाई दरांती आदि से की जा रही है तो फसल को अच्छे से सुखा ले, उसके बाद कटाई प्रारम्भ करें। फसल को लम्बे समय तक खेत में एकट्ठा करके न रखें। फसल को शीघ्र ही थ्रेसर आदि से निकलवा लें। 

हरी खाद के लिए फसलों की बुवाई 

अप्रैल माह में किसानों द्वारा भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई की जाती है। हरी खाद की फसलों में ढेंचा को भी शामिल किया जाता है। ढेंचा की बुवाई का कार्य अप्रैल माह के अंत तक कर देना चाहिए। ढेंचा की खेती से मिट्टी में पोषक तत्वों की उपस्तिथी बनी रहती है। 

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चना और सरसों की कटाई 

अप्रैल के महीने में सरसों, आलू और चना की कटाई हो जाती है। इन सभी फसलों की कटाई के बाद किसान उसमें तुरई, खीरा, टिण्डा, करेला और ककड़ी जैसी सब्जियां भी उगा सकता है। ध्यान रखें बुवाई करते वक्त पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर से 100 सेंटीमीटर के बीच में रखें। यदि इन सभी सब्जियों की बुवाई कर दी गई हो, तो सिंचाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। फसल के अधिक उत्पादन के लिए हाइड्रोजाइड और ट्राई आयोडो बेन्जोइक एसिड को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। 

मूली और अदरक की बुवाई 

रबी फसलों की कटाई के बाद इस माह में मूली और अदरक की बुवाई की जाती है। मूली की आर आर डब्ल्यू और पूसा चेतकी किस्म इस माह में उगाई जा सकती है। अदरक की बुवाई करने से पहले बीज उपचार कर लें।  बीज उपचार के लिए बाविस्टीन नामक दवा का उपयोग करें। 

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टमाटर की फसल में लगने वाला कीट 

टमाटर की बुवाई का कार्य अप्रैल माह से पहले ही कर दिया जाता है। अप्रैल माह में टमाटर की फसल को फल छेदक रोगों से बचाने के लिए मैलाथियान रासायनिक दवा को 1 मिली पानी में मिला कर छिड़काव कर दें। लेकिन छिड़काव करने से पहले पके फलों को तोड़ लें। छिड़काव करने के बाद फलों की 3 - 4 दिनों तक तुड़ाई न करें। 

भिन्डी की फसल 

वैसे तो भिन्डी के पौधो में ग्रीष्मकालीन से ही फल लगने शुरू हो जाते है। नरम और कच्चे फलों को उपयोग के लिए तोड़ लिया जाता है। भिन्डी में लगने वाले फलों को 3-4 दिन के अंतराल पर तोड़ लेना चाहिए। यदि फलो की देरी से तुड़ाई होती है, तो फल कड़वे और कठोर रेशेदार हो जाते है। 

कई बार भिन्डी के पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, और फलों का आकर भी छोटा हो जाता है। भिन्डी की फसल में यह रोग पीला मोजेक विषाणु द्वारा होता है। इस रोग से फसल को बचाने के लिए रोग ग्रस्त पौधो को उखाड़कर फेक दें या फिर रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कर इस फसल को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। 

प्याज और लहसुन की खुदाई 

अप्रैल माह में प्याज और लहसुन की खुदाई शुरू कर दी जाती है। प्याज और लहसुन की खुदाई करने से 15 -20 दिन पहले ही सिंचाई का काम बंद कर देना चाहिए। जब पौधा अच्छे से सूख जाए तभी उसकी खुदाई करें। पौधा सूखा है या नहीं इसकी पहचान किसान पौधे के सिरे को तोड़कर कर सकता है। 

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शिमला मिर्च की देख रेख 

शिमला मिर्च की फसल में 8 -10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। फसल में खरपतवार को कम करने के लिए  निराई और गुड़ाई का काम भी करते रहना चाहिए। शिमला मिर्च की खेती को कीटों के प्रकोप से बचाने के लिए रोगेर 30 ई सी को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। कीट का ज्यादा प्रकोप होने पर 10 -15 दिन के अंतराल पर फिर से छिड़काव कर सकते है। 

बैंगन की फसल 

बैंगन की फसल में निरंतर निगरानी रखे, बैंगन की फसल में तना और फल छेदक कीटों की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इसीलिए फसल को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशक दवाइयों का उपयोग करें।

कटहल की फसल 

गलन जैसे रोगों की वजह से कटहल की खेती खराब हो सकती है। इसकी रोकथाम के लिए जिंक कार्बामेट के घोल का छिड़काव करें। 

मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्य

मार्च माह के कृषि संबंधी आवश्यक कार्य

मार्च के महीने में रबी की फसले पक कर तैयार हो जाती है इस समय किसानों को बहुत सी बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है। यहां आप जानेगे की इस महीने में आप आपने कृषि कार्यों को आसानी से कैसे करें। 

दलहनी फसलें 

मार्च माह में चने, मटर और मसूर की फसल पर कीट और रोगों का ज्यादा प्रकोप होता है। चने की फसल में छेदक कीट का प्रकोप भारी मात्रा में होता है, यह पत्तियों और पौधों के कोमल हिस्सों से रस चूसकर उन्हें नुक्सान पहुंचाते है। इस कीट के रासायनिक नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 1 लीटर को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे या फिर इसके स्थान पर 250 ml इमामेक्टिन बेंजोएट का भी उपयोग कर सकते है। 

मसूर की फलियों पर इस कीट के प्रभाव को कम करने के लिए फेनवालरेट रसायन की 750 मिली लीटर या मोनोक्रोटोफास 1 लीटर को 600 -800 लीटर पानी में घोलकर छिड़क दे। साथ ही मटर और मसूर की खेती में चेपा कीट को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान की 50 इ सी की 2 लीटर मात्रा या फारमेथियन 25 इ सी की 1 लीटर मात्रा को 600 -700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करे। 

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मार्च माह यानी ग्रीष्मकाल में उड़द और मूँग की भी बुवाई की जाती है। मूँग और उड़द की विभिन्न किस्में है जिनकी बुवाई मार्च में की जाती है। उड़द की कुछ उन्नत किस्में इस प्रकार है: आजाद उड़द, पंत उड़द 19, पी डी यू 1, के यू 300, के यू जी 479, एल यू 391 और पंत उड़द 35। इसके अलावा मूँग की भी कुछ उन्नत किस्में है मेहा, मालवीय, जाग्रती, सम्राट, पूषा वैशाखी और ज्योति आदि है।

गेहूँ और जौ    

इस समय गेहूँ और जौ की खेती में किसान को समय समय पर सिंचाई का कार्य करते रहना चाहिए। गेहूँ और जौ की खेती में 15 -20 दिन के अंतराल पर खेत में पानी लगाया जाना चाहिए। लेकिन ध्यान रहें खेत में सिंचाई का कार्य कभी तेज हवाओं के दौरान न करें। तेज हवाओं के दौरान सिंचाई का कार्य किया जाता है, तो इससे फसल के गिरने का डर रहता है। बदलते मौसम के दौरान गेहूँ और जौ में पीला रतुआ रोग होने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। यदि गेहूँ की फसल में आपको काले रंग पुष्क्रम दिखाई दे तो उन्हें तोड़कर फेंक दे या फिर मिटटी में अच्छे से दबा दे। 

ज्यादा तापमान बढ़ने की वजह से गेहूँ की पीली पत्तियां काली धारियों वाली पत्तियों में बदल जाती है। किसान इस रोग की रोकथाम के लिए प्रोपीकोनजोल 25 इ सी की 1% की दर का छिड़काव करें। यदि रोग का प्रकोप ज्यादा होता है, तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है। इस रासायनिक दवा का छिड़काव करनाल बंट रोग को भी नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। 

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यदि गेहूँ की फसल में माहू रोग लगता है तो 2 मिली लीटर डाइमेथोएट या 20 ग्राम इमिडाक्लोप्रिड को 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दे। यदि प्रकोप ज्यादा देखने को मिलता है तो इसका फिर से छिड़काव किया जा सकता है।

ग्रीष्मकाल की चारा फसलों की बुवाई 

पशुओं के चारे के लिए किसानों द्वारा ग्रीष्मकाल में चारा फसलें उगाई जाती है जैसे ग्वार, लोबिया, ज्वार, मक्का और बाजरा। इस मौसम में चारा फसलें आसानी से उगाई जा सकती है। चारा फसलों की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को सही बीज का चयन करना चाहिए। बुवाई से पहले किसान बीज का उपचार कर ले। बीज उपचार के लिए किसान 1 किलो बीज में 2.5 ग्राम थीरम और बाबिस्टीन का उपयोग कर सकता है।

बरसीम में बीज उत्पादन 

बरसीम एक चारा फसल हैं, जिसे मुख्यत पशुओं के चारे के लिए उगाया जाता है। मार्च के दूसरे सप्ताह से बरसीम की कटाई बंद कर देनी चाहिए। यदि आप बरसीम का बीज बनाना चाहते हो तो खेत में नमी खत्म न होने दे। जब तक बरसीम में फूल आये और उसमे दाना न पड़े तब तक उसमे सिंचाई करनी चाहिए। बरसीम में दाना पड़ने के बाद, पौधों पर सूक्ष्म पोषक तत्वों के मिश्रण का छिड़काव किया जा सकता है। इससे बीज की अधिक पैदावार होती है। बरसीम में फूल आने के बाद उसमे खरपतवार जैसी परेशानियां भी देखने को मिलती है, खरपतवार के पौधों को उसी समय उखाड़ कर फेंक दे।

गन्ने की बुवाई 

मार्च के माह में उत्तरी भारत में गन्ने की खेती की जाती है। गन्ने की खेती करने के लिए गन्ने के बीज टुकड़ो का रोग रहित रहना जरूरी है। पेड़ी का बीज उपयोग करने से फसल में रोग लगने की ज्यादा संभावनाएं रहती है। इसलिए बुवाई से पहले गन्ने के बीज टुकड़ो का उपचार कर ले। बीज उपचार करने के लिए किसान 2 ग्राम बाबिस्टीन में गन्ने के बीज टुकड़ो को 15 मिनट तक भिगो कर रखे। 

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रबी की फसल की कटाई के बाद किसान भूमि की उर्वरकता को बढ़ाने के लिए हरी खाद वाली फसलों की बुवाई कर सकते है। हरी फसलों में सम्मिलित है ढेंचा, सनई, लोबिया और ग्वार। किसानों द्वारा हरी खाद के लिए ज्यादातर दलहनी फसलें उगाई जाती है। यह फसलें मिट्टी की भौतिक दशा को सुधारने के साथ साथ मिट्टी में जीवांश की मात्रा को भी बढ़ाती है। हरी खाद के प्रयोग से दूसरी फसल में कम खाद की जरूरत पड़ती है।